बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 इतिहास बीए सेमेस्टर-3 इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 इतिहास
प्रश्न- क्लाइव द्वारा बंगाल में द्वैध शासन की विवेचना कीजिये।
अथवा
द्वैध शासन प्रणाली के क्या दुष्परिणाम थे?
उत्तर -
द्वैध शासन
क्लाइव ने बंगाल में द्वैध शासन की स्थापना की जिसके अनुसार बंगाल में कम्पनी तथा नवाब दोनों के शासन को स्वीकार लिया गया। मुगल सम्राट वायसराय के रूप में अधिकारों को उपयोग में लाता था। दीवानी में मालगुजारी एवं असैनिक न्याय आते थे। सैनिक अधिकारी और फौजदारी न्याय निजामत में आते थे। नवाब द्वारा निजामत की स्वीकृति सन् 1765 ई. में कम्पनी को दी गई। सन् 1765 ई. में शाहआलम से दीवानी के अधिकार कम्पनी ने प्राप्त किये। कम्पनी ने शासन का उत्तरदायित्व अपने ऊपर नहीं लिया केवल अधिकार अपने हाथ में कर लिये। शासन का उत्तरदायित्व नवाब पर ही छोड़ दिया। प्रशासन का थोड़ा-सा उत्तरदायित्व नवाब या डिप्टी नवाब पर होता था। इसकी नियुक्ति नवाब करता था। सन् 1769 ई. में अंग्रेज निरीक्षकों की नियुक्ति मालगुजारी के अफसरों को नियंत्रित करने के लिये की गयी। इससे स्थिति सुधर न पाई, अपितु बढ़ती ही गई। रिश्वतखोरी का जन्म हुआ। इससे व्यवस्था बिगड़ती ही गई।
प्रश्न यह उठता है क्लाइव ने बंगाल का शासन अपने हाथ में क्यों नहीं कर लिया, क्योंकि नवाब तो उसके हाथों की कठपुतली ही था। क्लाइव ने इस व्यवस्था को इसलिये अपनाया कि शासन का उत्तरदायित्व उस पर न रहे और आमदनी भी उसको हो। अंग्रेजों को तो इससे अवश्य लाभ था, लेकिन नवाब को परेशान किया जाता था और बंगाल की प्रजा को स्वामियों द्वारा पीसा जाता था। नवाब जिस पर कि बंगाल के शासन का उत्तरदायित्व था, शासन संचालन के लिये प्रजा से धन इक 186 करता था और दूसरी ओर कम्पनी प्रजा से धन वसूल कर लाभ उठाती थी। इससे प्रजा पर काफी अत्याचार होते थे। कम्पनी के कर्मचारियों के कर्तव्य शून्य होते थे। समस्त अधिकार कम्पनी को दे दिये गये थे और कर्तव्य नवाब को सौंप दिये गये थे।
इस पद्धति की आलोचना करते हुए पी. ई. राबर्ट्स ने लिखा हैं "अधिकार और कर्तव्य के पृथककरण के कारण प्राचीन बुराइयों का प्रकटीकरण हो गया।"
एच. डी. डॉडवेल के अनुसार, इस प्रणाली के कुछ सामाजिक लाभ भी थे। यह व्यवस्था समय की माँग के अनुकूल थी। सबसे बड़ी आवश्यकता थी, नवाब पर नियंत्रण लगाने की और इस आवश्यकता की पूर्ति इस व्यवस्था द्वारा की गई थी। इसके द्वारा वैदेशिक सरकारों तथा देशी सरकारों को आश्वासन मिला।
द्वैध शासन के सम्बन्ध में क्लाइव ने अपने विचार इस प्रकार प्रकट किये हैं, "राजनीति के सम्बन्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण बात है सरकार के संगठन की पद्धति। दीवानी सम्बन्धी अधिकार पहले प्रान्तों के सूबेदारों को प्राप्त थे। अब वे ईस्ट इण्डिया कम्पनी को मिल गये। अब उन्हें बहुत कम अधिकार तथा प्रभुत्व प्राप्त हैं। ये अधिकार चाहे जितने अर्थहीन क्यों न हों, लेकिन उनकी समझ में यह रहना चाहिये कि उनके साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिये। इससे विदेशी राज्यों पर प्रभावपूर्ण नियन्त्रण रखा जा सकता है। बाह्य रूप से इन अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता नहीं है। उनके द्वारा बताई गई शिकायतों को समाप्त किया जाता है, इसलिये इसे स्मरण रखा जाना चाहिये कि सूबे का भी अस्तित्व है। इसकी समस्त आय कम्पनी की है।"
पी. ई. राबर्ट्स के अनुसार, क्लाइव को स्वीकार करना पड़ेगा कि द्वैध शासन पद्धति अपूर्ण थी। वास्तविकता के कारण क्लाइव सम्पूर्णता को प्राप्त न कर सका। इस बात को सभी को स्वीकार करना पड़ेगा की नवाब को केवल नाममात्र के अधिकार प्राप्त थे, परन्तु स्थिति के कारण इन नाममात्र के अधिकारों का भी सम्मान किया जाना चाहिये।
डॉ. नन्दलाल चटर्जी के अनुसार, "बंगाल का द्वैध शासन व्यावहारिक न था। क्लाइव एवं अव्यवस्था को ध्यान में न रखकर अधिकारों का विभाजन किया। केवल मात्र स्वार्थ सिद्धि के लिये यह उपाय था। इसमें कर्त्तव्य भावना की पूर्णतया अवहेलना की गयी थी। इसके द्वारा देशी राजाओं तथा विदेशी जातियों को धोखा दिया गया था। इन्हें प्रसन्न रखना क्लाइव के लिये आवश्यक था। नवाब अब पेंशनर बन गया था और नाम मात्र का शासक था। उसे किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त न थे। क्लाइव ने आग्रहपूर्वक उसके अधिकारों को, जोकि नाम मात्र के थे जारी रखा।"
द्वैध शासन से यह लाभ हुआ कि आगामी समय में कम्पनी के कर्मचारी सरकार मालगुजारी इकट्ठा कर सकें। इससे समस्त प्रशासन व्यवस्था के लिये समस्त नागरिक उत्तरदायी हो गये।
द्वैध शासन प्रणाली को क्लाइव ने जन्म दिया और वारेन हेस्टिंग्ज ने इसे समाप्त कर दिया। यह अन्तरिम व्यवस्था थी। इसे सर्वदा के लिये स्थायी रूप से नहीं अपनाया गया था। यह व्यवस्था अंग्रेजों की कठिनाइयों को दूर करने के लिए अपनाई गई थी।
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- प्रश्न- 1399 ईस्वी से अठारहवीं सदी के मध्य मैसूर राज्य की स्थिति से अवगत कराइये।
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- प्रश्न- अश्पृश्यता निवारण के लिए महात्मा गाँधी की सेवाओं का मूल्याँकन कीजिए।
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- प्रश्न- नाविक विद्रोह 1946 का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- स्वदेशी विचार के विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- होमरूल से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- चैतन्य महाप्रभु पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'पुरुषार्थ आश्रमों के मनोनैतिक आधार हैं। टिप्पणी कीजिए।
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